क्यों न मंज़र थमा, लो फ़िर आबरू लूटी गई। क्यों न मंज़र थमा, लो फ़िर आबरू लूटी गई।
वो नारी मूर्ति नहीं, है इंसान, उस मातृशक्ति को मेरा कोटि-कोटि प्रणाम।। वो नारी मूर्ति नहीं, है इंसान, उस मातृशक्ति को मेरा कोटि-कोटि प्रणाम।।
वापसी पर वापसी पर
राष्ट्रभाषा हिन्दी पर कविता राष्ट्रभाषा हिन्दी पर कविता
नो दिनों तक नवरुपों का आरती थाल हैं सजाते माँ की ममता, दया, त्याग व बलिदान याद हैं आते नो दिनों तक नवरुपों का आरती थाल हैं सजाते माँ की ममता, दया, त्याग व बलिदान या...
मैं नीर भरी अबला नारी, दुनिया ने मुझको तोड़ा था। मैं नीर भरी अबला नारी, दुनिया ने मुझको तोड़ा था।